Wednesday, 19 February 2020

एक यादगार पल मन को छू लेने वाला एक लड़की की कहानी

एक यादगार पल मन को छू लेने वाला
एक लड़की की कहानी

एक पुरानी और क्षतिग्रस्त इमारत जिसके तीसरे माले में वह रहती थी वहां तक चढ़ते मे हांफने को आ गई ...
"रेनू के हाथ में जादू है एक बार उसके सिले कपड़े पहन लोगी तो दूसरे किसी दर्जी की तरफ मुड़ोगी भी नही....
" शिखा ने बड़े विश्वास के साथ जब कहा तो मैंने भी सोचा, जरा उसके कहे को परख लूँ ....
पर जगह देख सारा जोश ठंडा पड़ने लगा..
"शिखा ने भी कहाँ फंसा दिया, चढ़ते चढ़ते दम फुलने लगा...
 गुस्से में शिखा को सौ लानते भेजी
दरवाजा उसकी माँ ने खोला.. चेहरा शिष्ट,एवं सौम्य...
मैंने आने की वजह बताई....
"आईये बैठिए , शिखा ने बता दिया था रेनू बस आती होगी....
आज देर हो गई उसे..." कह पानी लेने अंदर चली गई
घर एकदम साफ, स्वच्छ...
सारा सामान करीने से समेटा गया मैं कमरे का मुआइना करती रही..
ट्रे में पानी का गिलास रखे जब वे लौटी तो बात करने के इरादे से मैंने कहा, "आपकी बेटी के हाथों का जादू हमें यहाँ खींच लाया...
वैसे आपके यहाँ सूट की सिलाई कितनी हैं...पता होते भी मैंने पूछ लिया...
"सिपंल सूट के ढाई सौ और डिजायनर के पाँच सौ से छः सौ रुपए के बीच...
एक प्रोफेशनल की तरह उन्होंने सिलाई बताई...
"हमारी बुटीक वाली कुमकुम तो हमारे पैसों का मोह ही नहीं करती.. जो मुँह से कह दे वही देना पड़ता है...ऊपर से जी.एस.टी का तमगा दिखा पक्की रसीद भी नहीं देती ...वैसे फिटिंग इतनी बढ़िया देती है कि छोड़ा नहीं जा रहा ...
मेरे मन ने खाका खींचा|
तभी रेनू की मम्मी सिलाई की बानगी दिखाने के लिए तीन चार सूट उठा लायी...
मेरी आँखों की चमक बढ़ गयी बडी बारीक और साफ काम....डिजाइनर सूट तो लाजवाब लग रहे थे इनके तो कुमकुम पंद्रह सौ से कम न लेती और दस अहसान से हमें अलग लपेटती...मैंने मन ही मन हिसाब लगाया
तभी सीढ़ियों से किसी के ऊपर आने की आवाज आई 
"लीजिए लगता है रेनू आ गई..बोल रेनू की मम्मी सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी....
रेनू ही थी  दोनों हाथों में बैसाखी लिए...
जिन सीढ़ियों को चढ़ते समय मुझे हफनी आ गई थी उसे रेनू कम से कम एक बार तो जरूर चढ़ती-उतरती होगी....
 मेरा मन खुद पर शर्मिंदा हो उठा
उसने शायद मेरे मन के भाव पढ़ लिए थे...
"आपका नाम सुन कर यहाँ आई थी....
आप जितने पैसे लेगी ,मैं देने को तैयार हूँ...
" मुझे लगा नहीं कि ये दया का सागर लहरा मैं उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचा रही हूँ...
बहुत हल्के पर दृढ़ आवाज में वो बोली,"मुझ पर दया मत दिखाईये....मेरे लिए स्वाभिमान ऊँचा है पैसा नही...
और फिर बैसाखी की जरूरत मेरे पैरों को हैं, दिमाग को नही....
कहकर वो मुसकराते अपनी सिलाई मशीन की और बढ गई ...
वही मे शर्मिंदगी से चुप थी ...
दोस्तों इंसान शरीर के किसी अंग से लाचार जरूर हो सकता है मगर मन से नही ...अगर आप मन से मजबूत बने रहे तो कोई समस्या आपको हरा नही सकती...

मैं उस लड़की को सलाम करता हूं
वह हमारे लिए प्रेरणा है।


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